सूरजपुर/कोरिया। जिले में धान खरीदी और परिवहन व्यवस्था में करोड़ों रुपए के गबन और अनियमितताओं का आरोप झेल चुके कंप्यूटर ऑपरेटर दीपेश साहू का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। विस्तृत जांच रिपोर्टों में सामने आए धांधली के तथ्य, धान की फर्जी एंट्री, परिवहन आदेशों में हेराफेरी और सरकारी खाद्यान्न के गबन के बावजूद दीपेश साहू को बैकुंठपुर जामपारा समिति में दोबारा पदस्थ कर दिया गया है। इस निर्णय ने प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर नियमों को दरकिनार कर किस आधार पर ऐसे कर्मचारी को दोबारा जिम्मेदारी दी जा रही है।
जांच प्रतिवेदन के अनुसार, धान परिवहन और संग्रहण केंद्रों में 2017 से लेकर 2020 तक विभिन्न केंद्रों पर भारी अनियमितताएँ पाई गईं। कई मौकों पर धान की एंट्री एक ही दिन में दो-दो बार की गई, ट्रकों की फर्जी रसीदें बनाकर धान को कहीं और भेजा गया, तथा वास्तविक स्टॉक और ऑनलाइन रिपोर्ट में भारी अंतर पाया गया। रिपोर्टों के अनुसार 18,95,62,900 रुपए का धान कम पाया गया, जबकि कुल गड़बड़ी की राशि लगभग 20 करोड़ से अधिक आंकी गई है।
क़ानून विशेषज्ञों के अनुसार, सरकारी खाद्यान्न के गबन या फर्जीवाड़े के मामलों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 409 (लोकसेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात), धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 467-468 (फर्जी दस्तावेज तैयार करना), तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 लागू होती हैं। इन धाराओं के तहत दोषी पाए जाने वाले अधिकारी या कर्मचारी को न केवल सेवा से निलंबित किया जाता है, बल्कि विभाग में पुनः पदस्थ करने पर पूर्ण प्रतिबंध होता है।
इसके बावजूद विभाग द्वारा दीपेश साहू को जामपारा समिति में फिर से नियुक्त करना यह दर्शाता है कि या तो मामले को हल्के में लिया जा रहा है, या फिर किसी राजनीतिक अथवा प्रशासनिक दबाव में निर्णय लिया गया है।
स्थानीय किसानों और सामाजिक संगठनों ने इस निर्णय पर कड़ा विरोध दर्ज करते हुए कहा है कि जब करोड़ों की गड़बड़ियां सामने हैं तो ऐसे कर्मचारी को पुनः जिम्मेदारी देना सरकारी तंत्र पर अविश्वास की स्थिति पैदा करता है। उन्होंने मामले की उच्च स्तरीय जांच और दीपेश साहू की तत्काल पदस्थापना निरस्त करने की मांग की है।
यदि प्रशासन जल्द कदम नहीं उठाता, तो यह मामला बड़े भ्रष्टाचार की मिसाल बन सकता है।

