कोरिया। धौराटीकरा सहकारी समिति के बर्खास्त कर्मचारी का समिति से मोहभंग अब साफ दिखाई देने लगा है। सेवा समाप्ति के बाद न तो उन्होंने समिति से जुड़े किसी भी दायित्व का निर्वहन किया और न ही अब तक समिति का कोई भी रिकॉर्ड या दस्तावेज प्राधिकृत अधिकारी को सौंपा है। उल्टे उन्होंने अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए समिति की ही चौकीदार को प्रमोशन दिया, तथा धान खरीदी केंद्र का प्रभारी भी अपनी मनमर्जी से नियुक्त करा दिया। यह नियुक्ति सहकारिता अधिनियम के स्पष्ट प्रावधानों का उल्लंघन है, क्योंकि इस स्तर के पदों पर प्रशिक्षित एवं पात्र व्यक्ति ही नियुक्त किए जा सकते हैं। सूत्रों की मानें तो जामपारा समिति प्रभारी को जिस समय सेवा से हटाया गया था, उस समय शासकीय आदेश भी जारी हुआ था, लेकिन जब वापस लिया गया तो जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई। यही वजह है कि अब कई सवाल उठ रहे हैं — यदि सेवा समाप्ति का आदेश प्रभावी है, तो फिर उनकी जॉइनिंग अथवा सेवा आदेश को निरस्त करने की जानकारी पब्लिश्ड क्यों नहीं की गई? क्या समिति अध्यक्ष किसी दबाव में आकर स्थिति स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं? इधर शासन की मंशा स्पष्ट है कि हड़ताल अवधि में नियम-विरुद्ध कार्य करने वाले तथा बार-बार समझाइश के बावजूद कर्तव्य में वापस न लौटने वाले कर्मचारियों को किसी भी स्थिति में सेवा पर वापस नहीं लिया जाएगा। कोरिया जिले के अंतर्गत धौराटिकरा समिति में भी इसी नीति के तहत सेवा समाप्ति का आदेश लागू किया गया। वहीं बर्खास्तगी के बाद भी रिकॉर्ड, दस्तावेज और कार्यभार न सौंपना गंभीर कानूनी उल्लंघन है। समिति का पूरा सिस्टम अव्यवस्थित है, जिससे किसानों के खाद–बीज वितरण, नगद भुगतान, सीसी लिमिट तथा अन्य आवश्यक कार्य प्रभावित हो रहे हैं। अब सबकी नजर इस पर है कि प्रशासन कब तक रिकॉर्ड प्राप्त कर समिति को सुचारू रूप से संचालित कर पाता है, अन्यथा विभाग को कठोर वैधानिक कार्रवाई करनी पड़ सकती है।
